Saturday, December 25, 2010

दोस्ती के मायने - Dosti Ke Mayne - The Meaning Of Friendship

आज कि दुनिया कि दोस्ती के मायने मुझको समझा दो यारो
होती है क्या दोस्ती मुझको भी बता दो यारो
दोस्ती एक खेल बन के रह गया है शायद
खेल खेल मे दिल तोड़ने कि ये अदा मुझको भी सिखा दो यारो
दोस्ती को दोस्ती ही रहने दो बदलो ना इसे खेल मे
या तो इसका नाम ही दुनिया से मिटा दो यारो
दिल तो आखिर दिल है उसे क्या पता वो किस ज़माने मे जी रहा है
इतनी सी भूल कि ना इतनी बड़ी सज़ा दो यारो
बहुत से लोग पहने मुखोटा दोस्ती का दिल को आपके लूटने को तैयार बैठे है
लूट ले जाये वो जिन्दगी ही इस से पहले उनको पहचानो यारो
इस से पहले कि "आदित्य" नफरत सी हो जाये दोस्ती के नाम से
संभालो इस रिश्ते को संभालो यारो ............संभालो यारो !
**आदित्य सकलानी**

आखिरी सलाम - Aakhiri Salam














क्या देखते हो मुझको के क्यों उदास बैठा हूं मैं तो सुनो ................
जा रहे हो जिन्दगी से तो जाते जाते मेरा ये एक फरमान भी लेते जाओ
अपनी यादों के साथ-२ जो आपकी ही है मेरी वो जान भी लेते जाओ
अब हर कोई पुकारने लगा था मुझे आपके ही नाम से
बस जाते - जाते मुझसे मेरी पहचान भी लेते जाओ
आपको खोने का गम तो जिन्दगी भर सताता ही रहेगा अब
बस जाते - जाते आपको पाने के मेरे अरमान भी लेते जाओ
आप ने सोचा जाने पे आपके भूल जायेगे हम तुम्हे
बाद तेरे हम किसी को अपना ना सकेगे जाते जाते मेरा ये पैगाम भी लेते जाओ
हम तुम्हे कभी अलविदा कहेगे नहीं ये तुम भी जानते हो
पर जाते -२ अपनी तरफ से हमारा आखिरी सलाम भी लेते जाओ
**आदित्य सकलानी**

जो मांगते है हम अक्सर - Jo Mangte Hai Hum Aksr

जो मांगते है हम अक्सर, वो हमारे मुकदर मे नहीं होता
लड़ जाते जहा से, मैं साथ तेरे हूँ, गर तूने ये कहा होता
कुछ रिश्ते निभाने है अभी मुझको जो खुदा ने बना के भेजे है साथ मेरे
वरना ये "आदित्य" जिन्दगी को भी रुसवा कर गया होता
मुनकिन नहीं भूल जाना ये जानते है सब मोहबत करने वाले
मिटा देता नाम तेरा, गर तू दिल पे ना मेरे लिख गया होता
कहती है दुनिया एक झूठ अक्सर के बहने दो आंसूओ को गम कम होंगे
काश के तेरा गम भी मेरे आंसूओ के साथ बह गया होता
खुदा ने एक रिश्ता और बनाया है दोस्ती का जो हमेशा रहेगा
जानता हूं कुछ गम हंस के तू भी सह गया होगा
"आदित्य" तो निकलता है हर सुबह रोशनी मे अपनी सबकों राह दिखाने
और दीखता भी रहता गर अँधेरा निशा(रात्रि) का उसे ना निगल गया होता
**आदित्य सकलानी**

बड़ा अच्छा लगता है
















मेरे बुलाने पे वो तेरा आना बड़ा अच्छा लगता है
देर से आने पे वो तेरा बहाने बनाना बड़ा अच्छा लगता है
वो मिलना हमारा उस पुराने तालाब पे जाके
वो बार -२ तेरा तेरी जुल्फे बिखराना बड़ा अच्छा लगता है
वो आते ही पास तेरे, इंतजार मे तेरे थके होने का बहाना बनाना मेरा
सोने के लिए लिए वो तेरी गोद का सिरहाना बड़ा अच्छा लगता है
वो बार-२ तुझसे मिलने कि मेरा जिद करना
समझा करो ये कह के तेरा मुझे सताना बड़ा अच्छा लगता है
जब भी मुश्किल आये कोई मेरी जिन्दगी कि राहों मे
मैं हूं ना कह के तेरा वो मुझको गले लगाना बड़ा अच्छा लगता है
पुछु जो कभी सवाल कोई भरी महफिल मे नजरो से अपनी
और मेरे सवाल पे वो तेरा नज़रे झुकाना बड़ा अच्छा लगता है
आ जाऊ जो कभी सामने तुम्हारे अचानक से मैं
वो देख के मुझे तुम्हारा शरमाना बड़ा अच्छा लगता है
वो तुम्हारे मुह से आदि कहलवाना बड़ा अच्छा लगता है
आप ही तो कहते हो आपको हमे आदि कह के बुलाना बड़ा अच्छा लगता है

**आदित्य सकलानी**

यह है हसीनो का असली रूप

















यह है हसीनो का असली रूप नागिन बनके है ये हम बेचारे लडको को डसती
जहर जब फ़ैल जाये दिल तक हमारे तो है हमारी बेबसी पे हंसती
इछाधारी है दोस्तों अलग अलग रूप दिखा के है बहलाती
बाद जाने के तुम्हारे बैठ के साथ सहेलियों के है तुम पे फ़ब्तिया कसती
हर जगह है फैली हुई ये मेरे साथियों
ना कोई शहर कि सीमा है ना है इनकी कोई बस्ती
फंसना ना इनके जाल मे तुम बहुत खतरनाक प्राणी है ये
फ़साने को अपने जाल मे मीठी-२ बाते है ये करती
बाद डसने के इनके जब रुक जाये दिल कि धडकने तुम्हारी
हमने तो कुछ भी नहीं किया ये है दोस्तों ये कहती
बीन बजा प्यार कि काबू मे करने कि अगर सोच रहे हो तुम इनको
तो बेटा प्यार व्यार के जाल मे नहीं है ये कभी फंसती
वक़्त है बच्चू अब भी संभल जाओ तुम सारे
ना आना कल ये कहते हुए पास "आदित्य" के के आज ये हमे भी डस ली
**आदित्य सकलानी**

ये मैंने सिर्फ हास्य के उद्देश्य से लिखी है कृपया इसे अन्यथा ना ले

Wednesday, December 15, 2010

चाहत चाँद की - Chaht Chand Ki






















कुछ सीढियों के बाद जहाँ रास्ता खत्म है उस रास्ते पे तू जाता क्यों है
प्यार के मायने ही पता नहीं है जिनको उनसे तू प्यार जताता क्यों है
चाँद कि रौशनी दूर से ही अच्छी दिखती है उसे वही से देखा कर
उसकी ठंडक से भरी रोशनी मे तू अपनी राते बिताता क्यों है
जानता है तेरा पहुंचना मुश्किल है उस तक
तो देख के तू उसको रात भर अपना दिल बहलाता क्यों है
बता जो दी उसने आज तुझको, के तेरी हद कहा तक है
जान के सच अपना अब तू अश्क बहाता क्यों है
सुनसान सी लगती है अब जब महफिले तेरी
फिर भी उम्मीद लेके तू महफिलों मे आता क्यों है
तू तो कहता है "आदित्य" कि उस शख्श कि यादों का तुझ पे कोई साया नहीं है
फिर बता जरा के तेरी गजलो मे जिक्र उसी का आता क्यों है

Sunday, November 21, 2010

प्रकृति-The Nature


















सुना है फूल देख कर उसे मुस्कुराते है
सुन के हंसी उसकी पक्षी चहचहाते है
देखा नहीं किसी ने उसको आज तक मगर
सुना है पेड़-पौधे उस से बाते अपनी बतियाते है
कोई बैठा है उसके हाथो मे कोई गोद मे उसकी सोया है
सुना है उसकी एक आवाज पे सब दौड़े चले आते है
उदास जो हो कभी वो या शिकन जरा सी चेहरे पे जो उसके आये
सुना है फूलो से लेके पक्षियों तक सब दिल उसका बहलाते है
खुश होके हवा के संग कभी जो चलती है वो नाचते गाते
सुना है नादिया और झरने साथ उसकी मस्ती मे बहते जाते है
कौन है ये इतनी दिलकश हसीं जिसकी मैं इतनी तारीफ कर रहा हूं
कौन है जिसे हर पल साथ होते हुए भी हम ना पहचान पाते है
ये प्रकृति है मेरे दोस्तों भगवान कि एक सुन्दर संरचना
जिसे खुद अपने हाथो हम बर्बाद किये जाते है
क्यों उदास है वो आज अपने दिल कि बात कह नहीं पाती किसी से
किस से करेगी बाते उस से बतियाने पाले पेड़-पौधो को तो हम ही काटते जाते है
क्यों उसका दिल बहलाने कि अब कोई पशु- पक्षी कोशिश नहीं करते
कैसे करेगे उन्हें तो हम ही पिंजरों मे कैद किये जाते है
क्यों हवाओ के साथ चलते-चलते दम उसका घुटने लगता है
क्यों ना घुटेगा हवाओ को हम ही तो धूऐ मे बदलते जाते है
मत रूठने दो इसको हमसे ना उदास करो इसको
फिर ना कहना कैसे अचानक सुनामी आ जाते है
गुस्सा जो इसे आया तुम पे
फिर ना कहना क्यों हर तरफ बरबादियो के मंजर छा जाते है
फिर ना कहना क्यों रातो कि तन्हाई हमे सताती है
सुबह उठते ही "आदित्य" कि किरणे तुम्हे झुलसाती है
अभी भी वक़्त है मिलके मना लो इसे मेरे यारो
बहुत सुन्दर है साथ इसका, इसके साथ साथ तुम भी थोडा मुस्कुरा लो यारो
**आदित्य सकलानी**

ये आप सब मेरी तरफ से आपसे याचना समझिये या विनती कुछ भी समझिये पर "दिल से दिल तक" समझिये

Friday, November 19, 2010

You Are My Heart




ना जाने क्यों आजकल अकेले मे गुनगुनाता हूँ मैं
खो के यादो मे किसी कि दिल को बहलाता हूँ मैं
पहले तो कभी मैं ऐसा ना था यारो
चलते चलते ना जाने कब बीच सड़को पे आ जाता हूँ मैं
अब तो मोब्बत मे उसकी जल जाने को दिल करता है मेरा
परवाने कि तरह जल जाने को शमा जलाता हूँ मैं
नींद आती नहीं रातो को करवटे बदलता रहता हूँ
रात भर कमरे कि बत्तियाँ जलाता बुझाता हूँ मैं
मैं नहीं जानता ये उसकी मोहब्बत है या मेरा दीवानापन
बस दिल यही कहता है खुद से ज्यादा उसे चाहता हूँ मैं

Thursday, November 11, 2010

आके मेरी नज्मो कि रोशनियों ने कहा उठ जाओ अब सवेरा हो गया - Aa Ke Meri Nazmo Ki Roshniyo Ne Kaha Uth Jao Ab Savera Ho Gya






















दर्द जब दिल का हद से बढ़ गया
उठा के कलम, कागज़ पे "आदित्य" अपनी बात कह गया
किसे ने कहा दीवाना है, किसी ने कहा पागल है
और पढ़ के कोई उस कागज़ को मुझे शायर कह गया
किसी ने कहा ग़ज़ल आपकी काबिले तारीफ है
कोई पढ़ के चंद शब्द इसको बकवास कह गया
किसी को इसमें उसका महबूब नज़र आया किसी को किसी कि बेवफाई
किसी ने कहा ये तो मेरे दिल की बात कह गया
ना जाना किसी ने लिखने वाले के दर्द को
जो ग़ज़ल के हर शब्द के साथ आंसूओ मे बह गया
सो गया जो कभी गुमनामियो के अंधेरो मे जाके आदित्य
आके मेरी नज्मो कि रोशनियों ने कहा उठ जाओ अब सवेरा हो गया

Monday, November 8, 2010

क्यों धुंध सी छाई है इस रास्ते पर - Kyo Dhundh Si Chhayi Hai Is Raste Pr























क्यों धुंध सी छाई है इस रास्ते पर
क्यों इतनी तन्हाई सी है इस रास्ते पर
ये वही रास्ता है जहा मिलते थे हम दोनों
तभी यादो कि एक परछाई सी है इस रास्ते पर
साथ चलते -२ ना जाने कब शाम ढाल जाती थी
देख के ढलते हुए सूरज  को जब घर जाने कि याद आती थी
ढलते सूरज कि उस लालिमा कि गहराई सी है इस रास्ते पर
छुप के कही पेड़ के पीछे वो सताना तुमको
चुप से आके रख के आँखों पे तुम्हारी हाथ वो सताना तुमको
आज फिर से वो याद वापिस लौट आई है इस रास्ते पर
काश के हम आज फिर साथ चलते इस रास्ते पर
पर अब तो बस तुम्हारी यादो कि ही परछाई है इस रास्ते पर ................

Sunday, September 12, 2010

जानता हूँ छोड़ना पड़ेगा एक दिन - Janta Hoon Chhodna Padega Ek Din -






































जानता हूँ छोड़ना पड़ेगा एक दिन तुझे मेरा हाथ अपने हाथो में लेकर
जाना चाहता हूँ मैं वो वक़्त आने से पहले तेरी यादे लेकर
हंसती थी खिलखिलाकर जब तुम बातो पे मेरी
जाना चाहता हूँ साथ अपने तुम्हारे वो ठहाके लेकर
याद आएगा वो लम्हा पल पल मुझको
थामा था जब तेरा हाथ दोस्ती करने के इरादे लेकर
इस से पहले के टूट जाये मजबूर होके
जाना चाहता हूँ साथ अपने वो तेरे वादे लेकर
हमेशा याद बनके रहेगा साथ तेरे "आदित्य"
जाना चाहता हूँ तुझको ये वादा देकर
जानता हूँ छोड़ना पड़ेगा एक दिन तुझे मेरा हाथ अपने हाथो में लेकर
बस जाना चाहता हूँ मैं वो वक़्त आने से पहले तेरी यादे लेकर

Wednesday, September 8, 2010

करके क़त्ल अपनी बेटी का

















मैंने सोचा उसे नींद नही आयी होगी
दिल में उसके कही ना कही तन्हाई होगी
पर ये क्या वो तो चैन कि नींद सोया है आज
कहते सुना बहुत दिनों बाद गहरी नींद आई होगी
सो सकता है क्या कोई चैन से इस तरह
क़त्ल अपनी बेटी का करने के बाद
होंठो पे जिसके अभी जुबा नहीं
मुहँ उसका हमेशा के लिए बंद करने के बाद
क्या हो गया है इंसानों को क्यों वो हैवान बनते जा रहे है
पूजते है वो जिनको उन्ही का कत्लेआम करते जा रहे है
कहता है "आदित्य" अभी भी सुधर जाओ, फिर ना मिलेगा वक़्त पछतावे का
क़त्ल करना ही है तो क़त्ल करदो अपनी बेटी के क़त्ल के इरादे का
अपनी बेटी के क़त्ल के इरादे का .................

Sunday, September 5, 2010

हम तो सिर्फ अपनी मोहब्बत पे ऐतबार किया करते है - Hum To Sirf Apni Mohabbat Pe Etbar Kiya Karte Hai - I Just Believe In My Love
























हमसे पूछते है आजकल क्या किया करते है
हम तो सिर्फ आप ही को याद किया करते है
ये हम नहीं कहते हमारे घरवाले कहते है
हम नींद में भी आप ही का नाम लिया करते है
अब तो लोग भी हमे पागल, दीवाना कहने लगे है
देख हर लड़की में शक्ल तुम्हारी हम हंस दिया करते है
जाने कैसी ये मोहब्बत है कैसा ये दीवानापन है
हम तो तेरे ख्वाबो में किये वादों पे भी ऐतबार किया करते है
जुबां से तुझको कुछ कहने कि जरूरत नहीं
हम तेरी हर बात हम आँखों से समझ लिया करते है
आने कि भी तुझको जरूरत नहीं
तेरी खुशबु हम हवाओ में पा लिया करते है
कभी माँगा नहीं "आदित्य" ने खुदा से भी तुझको ,
क्या पता दिल उसका भी फिसल जाये
हम तो सिर्फ अपनी मोहब्बत पे ऐतबार किया करते है

बार - बार Bar-Bar














कभी सुरुवात की थी हंसने हँसाने से
आज वक़्त गुज़र जाता है रूठने-मनाने में

पता नहीं ये खता हमसे क्यों होती है बार बार
हमसे मिलने पे आँखें किसी की नम क्यों होती है बार बार|
चाहा तो बहुत की न कहे कुछ भी ऐसा जो दिल पे लगे||
पर न जाने वही बाते जुबा पे क्यों होती है बार बार|
शायद हमारी किस्मत में ही नहीं दोस्ती किसी की पाना||
तभी तो धोखा हमारी किस्मत हमे यु देती है बार बार|
कहते है की हाथो की लकीरों में जो लिखा है वो होके रहेगा||
पर हमारी तो हाथो की लकीरे भी बदलती है बार बार|


ये मेरी खुद की लिखी हुई सिर्फ एक छोटी सी कविता ही नहीं
परन्तु मेरे दिल के जज्बात है जिन्हें हमने शब्दों की माला में पिरो कर
कविता में ढाला है

कई बार इन्सान करना कुछ और चाहता है पर हो कुछ और जाता है
वो पाना कुछ कुछ और चाहता है पर उसे मिलता कुछ और है शायद यही दुनिया का दस्तूर है
यदि आप लोगो को ये पसंद आये तो कृपया अपने विचार अवश्य दे

A Part Of Life ("किस्सा दोस्ती का हिस्सा जिन्दगी का")




















यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है|
हमारे दोस्त ने हमसे कहा वो हमारी जिन्दगी का हिस्सा है||
हम जानते है की वो हमारे लिए क्या है|
और ये भी जानते है की वक़्त किसके लिए रुकता है||
हम आज है कल रहे न रहे|
कल के बाद हमारी दोस्ती दुनिया के लिए एक किस्सा है||
हर कोई खुद के लिए जीता है इस जहां में|
जो दुसरो के लिए जीना सिखा दे वही तो दोस्ती का रिश्ता है||
जिन्दगी के हर मोड़ पे साथ निभाया है उसने मेरा|
बन के आया वो दोस्त मेरी जिन्दगी में फ़रिश्ता है||
जिसका न कोई "आदि"  है न है कोई अन्त|
ऐसा हमारी दोस्ती का रिश्ता है||
कुछ देर याद रख के भुला देना ही तो दुनिया की रीत है|
और जो भूले से भी न भूले कभी ऐसी मेरी प्यारी "प्रीत"  है||

यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है ........
यही तो हमारी दोस्ती का किस्सा है ........

सोचा जो न सपनो में आया है बनके हकीकत



















सोचा न था जो कभी सपनो में भी हमने
वो आज हकीकत बनके सामने आया है
रिश्ते बनाने में क्यों लग जाते है बरसो
और हर रिश्ते को एक पल में बिखरते पाया है
रात के अँधेरे में जो अक्सर डराता है मुझको
तलाशने पर मिला वो अक्सर अपना ही साया है
एक अच्छा दोस्त बनना सिखाया है जिसने
काबिल नहीं दोस्ती के ये एहसास भी दिलाया है
क्यों उतर नहीं पाते हम किसी की उमीदो पे खरे
ये बात "आदि" आज तक समझ नहीं पाया है
कुछ अच्छे दोस्त आज भी साथ है हमारे (P)
और उमरभर रहने वाला हमारी शक्शियत पे उनका साया है
चल दिए सब अपनी - अपनी कह के यारो
आदि के दिल की बात आज तक कोन समझ पाया है
समझ पाया है समझ पाया है ....?

कबूतर और कबूतरी
















शाम के सुहावने मौसम में जो निकला मन को बहलाने "आदि"
हलकी - हलकी बारिश कि बुँदे आ रही थी
दूर कही ढलते सूरज कि लालिमा भी गहरा रही थी
एसे में प्रेम का एक अजब नज़ारा देखने को मिला
जहा वक़्त नहीं इन्सान के पास एक दूसरे के लिए
गजब का सहारा देखने को मिला
कबूतर और कबूतरी गुटरगू-२ करके आपस में कुछ बतिया रहे थे
शायद शायरी प्रेम भरी वो भी एक दूसरे को सुना रहे थे
एक दूसरे कि आँखों में वो इंसानों कि तरह खोये हुए थे
ऐसा लग रहा था अरमान जगे है वो, जो ना जाने जो कब के सोये हुए थे
देख के उनको ख्याल आया इंसान से तो ये कबूतर अच्छे है
कम से कम अपने प्यार के प्रति तो सच्चे है
लौट के जो आया घर को तो दिल में इक सवाल सा था
उस कबूतर कि जगह मैं क्यों नहीं बस यही मलाल सा था.............

Friday, September 3, 2010

आतंकवाद
















गया था अमन और शांति का फूल लेकर उसके पास
पर उसके हाथो में तो सदा खंजर था
देखा दूसरे ही दिन अखबारों में
कितना दर्दनाक उसके इरादों का मंजर था
उसने तो सोचा नेक दिल वालो को मार के वो महान हो गया
जानता नहीं कर के ये सब, जहा वो डूब रहा वो पापो का समन्दर था
पर ये क्या देखा उसने एक दिन उसके भी घर के सामने भीड़ लगी थी
ये क्या हो गया? जो वो अभी-२ कर के आया था, वही मंजर उसके भी घर के अन्दर था

Sunday, August 29, 2010

बात मेरी और मेरी तन्हाई कि























शायद मेरी तन्हाई मेरा साथ दे
तनहाइयों में जाने को अपना हाथ दे
कुछ समय के लिए आप सबसे अलविदा चाहुगा
भगवान आप सब को "आदित्य" कि तरफ से खुशियों कि सौगात दे
बात कि थी कल तन्हाई से चाँद ,सितारे और रात गवाह है
उसने कहा मेरे आगोश में आ जा यही बस इक सलाह है
ये भी कहा कि मैं तुझको बहुत आराम दूंगी
सोचा भी जो ना होगा तुमने पल वो तमाम दूंगी
मैंने भी सोचा क्यों ना जाके देख लूं
उसकी तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ा के देख लूं
पर बोल दिया है "आदि" ने भी तन्हाई को उसके  पास जाने से पहले
कि फिर से सोच ले तू एक बार मुझको बुलाने से पहले
कही ऐसा ना तुझको अपने फैसले पे अफ़सोस हो जाये
तू मुझे लौट के जाने को कहे और तब तक मेरी जुबा खामोश हो जाये

Monday, August 23, 2010

मैं ऐसा ही हूँ


खुदा ने पैदा किया लेके दिल में जज़्बात एसे
कि मैं भूल के खुद को ओरों के लिए जीने लग गया
दुनिया ने हर कदम पे पैरों तले रौंदा मुझको
और में मुस्कुरा के हर गम पीने लग गया
लग ना जाये मेरी किसी बात का किसी को बुरा
सोच के ये हर बात पे होंठ अपने सीने लग गया
देखे सीने किसी के जब भी जख्म गम के
लेके सुई-धागा हंसी का उनको सीने लग गया
क्या बुरा किया मैंने जो सोचा सबका भला
जो हर शख्स लेने को खुद का मज़ा मदिरा कि तरह मुझको पीने लग गया
इस चकाचौंध दुनिया कि खवाइश तो "आदित्य" को कभी थी ही नहीं
बस देख के हालत दुनिया के अब अकेले जीने लग गया
अब अकेले जीने लग गया ......................?

ये सिर्फ कविता नहीं ये मैं हूँ मैं आदित्य सकलानी. में ऐसा ही हूँ सच में ऐसा ही हूँ मैं कभी -२ में खुद को ही समझ नहीं पता हूँ ........?
मुश्किल हो गया जीना मेरा इस दुनिया में
हालत ये हैं कि खुद को भी नहीं समझ पा रहा हूँ
ताश के पत्तों कि तरह हाथों में जिन्दगी है मेरी
हर पल बस बिखरता जा रहा हूँ मैं


दिल में जो था शायरी में ढाल कर आपके सामने रख दिया सच कह रहा हूँ बहुत सकूं मिल रहा है ...........................?

23 Aug, 2010

Sunday, July 4, 2010

शायरी

humne yu hi nahi dil ke jakhmo ke bharne ka nam liya hai
dil se chhot khayi thi or dil ko pathar bna liya hai



डर लगता है हमें उस नाम से यारो |
कहती है ये दुनिया जिसे दोस्ती ||
कभी तो लिखी जाती है इतिहास के पन्नो में |
कभी मिटा देती है किसी की हस्ती  ||






 ना जाने क्यों वो आजकल बदले -२ से नज़र आते है वो
ना जाने क्यों लगता है कुछ बहाने से बनाते है वो
कभी तो एहसास दिलाते है की पास है वो मेरे
ना जाने क्यों फिर पास होते हुए भी दूर नज़र आते है वो 

I am So Confused .......................................?





कुछ तो जिन्दगी जीने के लिए चाहिए
तू नहीं तेरी तस्वीर ही सही
अब याद आ रहा है तुने कब कहा था की मोहबत है "आदि" तुझसे
ये बाते तो  मैंने ही तुझसे थी कही 






एक वो है जो नहीं जानते की क्या है वो हमारे लिए |
एक "आदि" है जो कहता है मेरा सब है तुम्हारे लिए ||
खुदा ने जाने क्या लिखा है किस्मत में हमारी |
हम हो के भी भी नहीं हो सकते है उनके और न वो बने है हमारे लिए  ||

 वो कहते है हमसे की आपकी दोस्ती मागते है हम उम्र भर तक के लिए|
उन्हें क्या पता "आदि" ने तो जिन्दगी नाम कर दी है उनके, मरते दम तक के लिए||





आपकी यादों को दिल दे लगाके रखेगा ये "आदि" का वादा है|
दुनिया की पहचान नहीं बस "आदि" तो सीधा- साधा है ||
दोस्ती हम निभायेगे जब तक है हम |
प्यार तो बस प्यार है, चाहे पूरा है या हिस्सा उसका आधा है ||




 शिकार हो गए हम तो किसी की हंसी के |
निसार हो गए हम तो किसी की दिल्लगी पे||
क्या हुआ जो करके वादा वो भूल गए|
मजबूर तो हम भी थे अपने दिल की बेबसी पे ||
 3rd  Aug, 2010

 देखे लोग कैसी भी नजरो से हम तो गुज़र जायेगे अपनी मस्ती में  |
गुज़रते है हम जहा से भी लोग देखते रह जाते है बात ही ऐसी है हमारी हस्ती में ||
नदी हो या हो सागर की लहरे हम नहीं डरने वाले |
उन लहरों को पार करने के लिए बैठे है हम खुदा की बनायीं प्यार भरी कश्ती में||
7th Aug, 2010

  हवाओ ने भी अपना रुख मोड़ लिया है
जब से इंसानों ने अपना मुख मोड़ लिया है
अब क्या करेगी ये हवाए गाव जाकर
जब हम लोगो ने ही गावो से नाता तोड़ दिया है



 अपनी सांसो पे तुम्हे एतबार करना होगा
अपने दोस्तों से तुम्हे प्यार करना होगा
तनहा पाओ गर खुद को कभी एक आवाज देना कह के "आदि"
गर मौत भी मेरे करीब होगी तो उसे भी अपना मुख मोड़ना होगा

"जिन्दगी दोड़ने लगे गर काटने आपको बस दिल को अपने बच्चा कर लेना" 
9th Aug, 2010


 अब बात जब आपने पढने कि कि
तो हम तो उनकी आँखों से ही पढ़ लिया करते है
लोग सपने में किताबे देखते है
और हम किताबो में भी उनके सपने लिया करते है
11th Aug, 2010

. क्या मिटेगे ये लोग देश कि आन कि खातिर
जो बेच दे अपना इमां भी अपनी शान के खातिर
कहता है "आदित्य" कि दफा करो इनको यहाँ से
जो जीते है खुद के लिए क्या करेगे वो इन्सान कि खातिर
 
कभी लोगो कि मस्ती भरी आवाजो से गूंजता था जो कुआ
आज पतों कि डरावनी सरसराहट से गूजता है वो कुआ
कभी प्यासों कि प्यास बुझाता था जो कुआ
आज खुद एक बूंद पानी को तरसता है वो कुआ
तरसता है वो कुआ ..........


12th Aug, 2010

 हमारी आँखों में किसी को पहचानना इतना भी आसान नहीं
बस एक धुंधली सी तस्वीर नज़र आएगी
देखना ही है तो उसकी हाथो कि लकीरों में देखो
"आदि" के नाम कि एक लकीर नज़र आएगी 


18 Aug,2010 

 बस बात है कही अनकही उन बातो कि
जो हर पल दिल में मचलती रहती है
दुनिया के उस भाव कि.जो हर पल अपना रंग बदलती रहती है
रिश्ते शायद कही खो गए है अहम् के भाव में
कुटिल मुस्कान है सबके चेहरे पे जो सबको ठगती रहती है 



करके खिलवाड़ प्रकृति से बहुत तुम खुश होते हो 
जब दिखाती है वो रोद्र रूप भूकंप और सुनामी बनकर फिर क्यों तुम रोते हो 
भगवान ने जिसे जैसा बनाया वैसा ही रहने दो 
उस के बनाए को बदलने वाले तुम कोन होते हो 


उम्र मे छोटे सही पर इतने भी नादान नहीं
बहाना है या वक़्त कि पाबन्दी, कि "आदित्य" को इतनी भी पहचान नहीं
हमने तो दोस्ती कि है निभाते रहेगे उम्र भर के लिए
हमने दोस्त को दोस्त ही माना है कोई एहसान नहीं
मेरी हर बात पे उसके होंठो से निकलती ना है
एक अच्छी दोस्ती कि ये भी तो पहचान नहीं
 18th Sep, 2010

आदि तो शायर है शायरी मे अपनी बात कह गया
आँखों मे आंसू आने ना दिए बस हर गम हंस के सह गया 
उसने तो सोचा खुश है उसकी रुसवाई से "आदित्य"
ये ना समझा कि बाद उसके अब मेरे पास ना कुछ और रह गया
18th Sep, 2010



क्यों धुंध सी छाई है इस रास्ते पर
क्यों इतनी तन्हाई सी है इस रास्ते पर
अब याद आया ये वही रास्ता है जहा मिलते थे हम दोनों
तभी सोचु क्यों यादो कि एक परछाई सी है इस रास्ते पर
21 Sep, 2010


हर वक़्त जब इंतज़ार रहने लगे तब दोस्ती प्यार मे बदल जाती है
जुबा गर सामने दोस्त के भी रुकने लगे तो इकरार मे बदल जाती है
ध्यान रखना दिल को पता भी नहीं चलता
और हर ना हमारी बन के हाँ प्यार के इज़हार मे बदल जाती है
21 Sep, 2010

लिखना चाहता हूँ पर आजकल कलम साथ नहीं देती
कुछ लिखू कुदरत भी एसे हालत नहीं देती
जाना चाहता है "आदित्य" एक लम्बी सैर पे साथ उसके
पर वो भी आजकल हाथो मे मेरे अपना हाथ नहीं देती
11 Oct, 2010

मिल जाये जो साथ उसका तो और जिन्दगी मे क्या चाहिए
हमको तो हमेशा हाथो मे अपने हाथ उसका चाहिए
हर मंजिल को पर कर जायेगे चाहे डगर मुश्किल कितनी भी हो
"आदित्य" को  तो चलने के लिए बस साथ उसका चाहिए
11 Oct, 2010
 

भुलाना ना हमे याद रखना 
हम फिर आयेगे मिलने जरूर तुझसे  
मेरी जुदाई जब तेरी ख़ुशी बन गयी  है अब 
तेरी ख़ुशी के लिए जा रहे है अब दूर तुझसे
कुछ ना कहना तुम बस चुप कर जाना 
मेरे जाने का सबब लोग पूछेगे जरूर तुझसे


इन्जार बहुत किया तेरा तू ना आई लगता है तेरे फैसले पे सर झुकाना होगा

अब तो "आदित्य" भी ढल रहा है लगता है हमे भी जाना होगा

बुला लेना जब भी जी चाहे तेरा जब भी तुझे मुझे बुलाना होगा

वैसे हर सुबह मिलने आउगा तुझसे शाम ढले तक तेरा इंतज़ार करुगा

मेरे दिल का दरवाजा हमेशा खुला है तेरे लिए आ जाना जब भी तुझे आना होगा


कोशिश कर लेना गर भुला सकती हो मुझे दिल से


यकीन है अपनी मोहब्बत पे बहुत मुश्किल तुझे मुझे भुलाना होगा





याद तो हम बेहिसाब आयेगे ही 
नाम "आदित्य"" का हर उस जर्रे - २ मे लिखा है 
के जिस जर्रे से कोई भी आशिक गुजरा है 




दुनिया ने तो किसी को दिया ही क्या है 
जो करे परवाह दुनिया कि वो जिन्दगी अपनी जिया ही क्या है 
गर देखा होता दिल मे झांक के "आदित्य" 
तो मुझे कहना ना पड़ता बता तुझे मुझसे गिला क्या है 


यही मोहब्बत का दस्तूर है
पास होते हुए भी प्यार तुम्हारा तुमसे दूर है
हमने तो चाहा उसे दिल के इशारे पे

अब वो बेवफा निकला तो बताओ इसमें "आदित्य" का क्या कसूर है

जीते है हम अक्सर जिनके लिए "आदित्य"
एक दिन वो देते है जहर
तभी तो अब बेगाना सा लगता है
"आदित्य" को अपना ही शहर