कुछ सीढियों के बाद जहाँ रास्ता खत्म है उस रास्ते पे तू जाता क्यों है
प्यार के मायने ही पता नहीं है जिनको उनसे तू प्यार जताता क्यों है
चाँद कि रौशनी दूर से ही अच्छी दिखती है उसे वही से देखा कर
उसकी ठंडक से भरी रोशनी मे तू अपनी राते बिताता क्यों है
जानता है तेरा पहुंचना मुश्किल है उस तक
तो देख के तू उसको रात भर अपना दिल बहलाता क्यों है
बता जो दी उसने आज तुझको, के तेरी हद कहा तक है
जान के सच अपना अब तू अश्क बहाता क्यों है
सुनसान सी लगती है अब जब महफिले तेरी
फिर भी उम्मीद लेके तू महफिलों मे आता क्यों है
तू तो कहता है "आदित्य" कि उस शख्श कि यादों का तुझ पे कोई साया नहीं है
फिर बता जरा के तेरी गजलो मे जिक्र उसी का आता क्यों है
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