Sunday, November 21, 2010

प्रकृति-The Nature


















सुना है फूल देख कर उसे मुस्कुराते है
सुन के हंसी उसकी पक्षी चहचहाते है
देखा नहीं किसी ने उसको आज तक मगर
सुना है पेड़-पौधे उस से बाते अपनी बतियाते है
कोई बैठा है उसके हाथो मे कोई गोद मे उसकी सोया है
सुना है उसकी एक आवाज पे सब दौड़े चले आते है
उदास जो हो कभी वो या शिकन जरा सी चेहरे पे जो उसके आये
सुना है फूलो से लेके पक्षियों तक सब दिल उसका बहलाते है
खुश होके हवा के संग कभी जो चलती है वो नाचते गाते
सुना है नादिया और झरने साथ उसकी मस्ती मे बहते जाते है
कौन है ये इतनी दिलकश हसीं जिसकी मैं इतनी तारीफ कर रहा हूं
कौन है जिसे हर पल साथ होते हुए भी हम ना पहचान पाते है
ये प्रकृति है मेरे दोस्तों भगवान कि एक सुन्दर संरचना
जिसे खुद अपने हाथो हम बर्बाद किये जाते है
क्यों उदास है वो आज अपने दिल कि बात कह नहीं पाती किसी से
किस से करेगी बाते उस से बतियाने पाले पेड़-पौधो को तो हम ही काटते जाते है
क्यों उसका दिल बहलाने कि अब कोई पशु- पक्षी कोशिश नहीं करते
कैसे करेगे उन्हें तो हम ही पिंजरों मे कैद किये जाते है
क्यों हवाओ के साथ चलते-चलते दम उसका घुटने लगता है
क्यों ना घुटेगा हवाओ को हम ही तो धूऐ मे बदलते जाते है
मत रूठने दो इसको हमसे ना उदास करो इसको
फिर ना कहना कैसे अचानक सुनामी आ जाते है
गुस्सा जो इसे आया तुम पे
फिर ना कहना क्यों हर तरफ बरबादियो के मंजर छा जाते है
फिर ना कहना क्यों रातो कि तन्हाई हमे सताती है
सुबह उठते ही "आदित्य" कि किरणे तुम्हे झुलसाती है
अभी भी वक़्त है मिलके मना लो इसे मेरे यारो
बहुत सुन्दर है साथ इसका, इसके साथ साथ तुम भी थोडा मुस्कुरा लो यारो
**आदित्य सकलानी**

ये आप सब मेरी तरफ से आपसे याचना समझिये या विनती कुछ भी समझिये पर "दिल से दिल तक" समझिये

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