Sunday, September 5, 2010
कबूतर और कबूतरी
शाम के सुहावने मौसम में जो निकला मन को बहलाने "आदि"
हलकी - हलकी बारिश कि बुँदे आ रही थी
दूर कही ढलते सूरज कि लालिमा भी गहरा रही थी
एसे में प्रेम का एक अजब नज़ारा देखने को मिला
जहा वक़्त नहीं इन्सान के पास एक दूसरे के लिए
गजब का सहारा देखने को मिला
कबूतर और कबूतरी गुटरगू-२ करके आपस में कुछ बतिया रहे थे
शायद शायरी प्रेम भरी वो भी एक दूसरे को सुना रहे थे
एक दूसरे कि आँखों में वो इंसानों कि तरह खोये हुए थे
ऐसा लग रहा था अरमान जगे है वो, जो ना जाने जो कब के सोये हुए थे
देख के उनको ख्याल आया इंसान से तो ये कबूतर अच्छे है
कम से कम अपने प्यार के प्रति तो सच्चे है
लौट के जो आया घर को तो दिल में इक सवाल सा था
उस कबूतर कि जगह मैं क्यों नहीं बस यही मलाल सा था.............
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बहुत सुंदर लिखा है....बधाई
ReplyDeletehttp://veenakesur.blogspot.com/
कबूतर और कबूतरी गुटरगू-२ करके आपस में कुछ बतिया रहे थे
ReplyDeleteशायद शायरी प्रेम भरी वो भी एक दूसरे को सुना रहे थे
बहुत बढ़िया गुटुर गूं सुने कविता के माध्यम से ....
Thanks Veena Ji Or Mahander Ji
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