Monday, August 23, 2010
मैं ऐसा ही हूँ
खुदा ने पैदा किया लेके दिल में जज़्बात एसे
कि मैं भूल के खुद को ओरों के लिए जीने लग गया
दुनिया ने हर कदम पे पैरों तले रौंदा मुझको
और में मुस्कुरा के हर गम पीने लग गया
लग ना जाये मेरी किसी बात का किसी को बुरा
सोच के ये हर बात पे होंठ अपने सीने लग गया
देखे सीने किसी के जब भी जख्म गम के
लेके सुई-धागा हंसी का उनको सीने लग गया
क्या बुरा किया मैंने जो सोचा सबका भला
जो हर शख्स लेने को खुद का मज़ा मदिरा कि तरह मुझको पीने लग गया
इस चकाचौंध दुनिया कि खवाइश तो "आदित्य" को कभी थी ही नहीं
बस देख के हालत दुनिया के अब अकेले जीने लग गया
अब अकेले जीने लग गया ......................?
ये सिर्फ कविता नहीं ये मैं हूँ मैं आदित्य सकलानी. में ऐसा ही हूँ सच में ऐसा ही हूँ मैं कभी -२ में खुद को ही समझ नहीं पता हूँ ........?
मुश्किल हो गया जीना मेरा इस दुनिया में
हालत ये हैं कि खुद को भी नहीं समझ पा रहा हूँ
ताश के पत्तों कि तरह हाथों में जिन्दगी है मेरी
हर पल बस बिखरता जा रहा हूँ मैं
दिल में जो था शायरी में ढाल कर आपके सामने रख दिया सच कह रहा हूँ बहुत सकूं मिल रहा है ...........................?
23 Aug, 2010
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kavita achchhi lagi dhanyawad.
ReplyDeleteबेहद सच्ची और अच्छी प्रस्तुति - यही सोच बनी रहे - हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteउत्साह बढ़ाने के लिए आप सबका बहुत-२ धन्यवाद
ReplyDeleteजयराम जी समझ लीजिये हम आपके परिवार में शामिल हो ही गए
हिन्दी ब्लॉगजगत में स्वागत है।
ReplyDeleteइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है...भाव सच्चे हैं
ReplyDeleteखुदा ने पैदा किया लेके दिल में जज़्बात एसे
कि मैं भूल के खुद को ओरों के लिए जीने लग गया
दुनिया ने हर कदम पे पैरों तले रौंदा मुझको
और में मुस्कुरा के हर गम पीने लग गया
लग ना जाये मेरी किसी बात का किसी को बुरा
सोच के ये हर बात पे होंठ अपने सीने लग गया
भाव अच्छे हैं लेकिन क्या..जीने लग गया..की जगह...जीने लगा
गम पीने लग गया की जगह..गम पीने लगा
होंठ सीने लग गया की जगह..होंठ सीने लगा.... नहीं बेहतर रहेगा
जो खटका उसके लिए सुझाव है....ऐसा करके देखिएगा अच्छा लगेगा।
http://veenakesur.blogspot.com/