Sunday, August 29, 2010

बात मेरी और मेरी तन्हाई कि























शायद मेरी तन्हाई मेरा साथ दे
तनहाइयों में जाने को अपना हाथ दे
कुछ समय के लिए आप सबसे अलविदा चाहुगा
भगवान आप सब को "आदित्य" कि तरफ से खुशियों कि सौगात दे
बात कि थी कल तन्हाई से चाँद ,सितारे और रात गवाह है
उसने कहा मेरे आगोश में आ जा यही बस इक सलाह है
ये भी कहा कि मैं तुझको बहुत आराम दूंगी
सोचा भी जो ना होगा तुमने पल वो तमाम दूंगी
मैंने भी सोचा क्यों ना जाके देख लूं
उसकी तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ा के देख लूं
पर बोल दिया है "आदि" ने भी तन्हाई को उसके  पास जाने से पहले
कि फिर से सोच ले तू एक बार मुझको बुलाने से पहले
कही ऐसा ना तुझको अपने फैसले पे अफ़सोस हो जाये
तू मुझे लौट के जाने को कहे और तब तक मेरी जुबा खामोश हो जाये

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