Saturday, December 25, 2010

दोस्ती के मायने - Dosti Ke Mayne - The Meaning Of Friendship

आज कि दुनिया कि दोस्ती के मायने मुझको समझा दो यारो
होती है क्या दोस्ती मुझको भी बता दो यारो
दोस्ती एक खेल बन के रह गया है शायद
खेल खेल मे दिल तोड़ने कि ये अदा मुझको भी सिखा दो यारो
दोस्ती को दोस्ती ही रहने दो बदलो ना इसे खेल मे
या तो इसका नाम ही दुनिया से मिटा दो यारो
दिल तो आखिर दिल है उसे क्या पता वो किस ज़माने मे जी रहा है
इतनी सी भूल कि ना इतनी बड़ी सज़ा दो यारो
बहुत से लोग पहने मुखोटा दोस्ती का दिल को आपके लूटने को तैयार बैठे है
लूट ले जाये वो जिन्दगी ही इस से पहले उनको पहचानो यारो
इस से पहले कि "आदित्य" नफरत सी हो जाये दोस्ती के नाम से
संभालो इस रिश्ते को संभालो यारो ............संभालो यारो !
**आदित्य सकलानी**

आखिरी सलाम - Aakhiri Salam














क्या देखते हो मुझको के क्यों उदास बैठा हूं मैं तो सुनो ................
जा रहे हो जिन्दगी से तो जाते जाते मेरा ये एक फरमान भी लेते जाओ
अपनी यादों के साथ-२ जो आपकी ही है मेरी वो जान भी लेते जाओ
अब हर कोई पुकारने लगा था मुझे आपके ही नाम से
बस जाते - जाते मुझसे मेरी पहचान भी लेते जाओ
आपको खोने का गम तो जिन्दगी भर सताता ही रहेगा अब
बस जाते - जाते आपको पाने के मेरे अरमान भी लेते जाओ
आप ने सोचा जाने पे आपके भूल जायेगे हम तुम्हे
बाद तेरे हम किसी को अपना ना सकेगे जाते जाते मेरा ये पैगाम भी लेते जाओ
हम तुम्हे कभी अलविदा कहेगे नहीं ये तुम भी जानते हो
पर जाते -२ अपनी तरफ से हमारा आखिरी सलाम भी लेते जाओ
**आदित्य सकलानी**

जो मांगते है हम अक्सर - Jo Mangte Hai Hum Aksr

जो मांगते है हम अक्सर, वो हमारे मुकदर मे नहीं होता
लड़ जाते जहा से, मैं साथ तेरे हूँ, गर तूने ये कहा होता
कुछ रिश्ते निभाने है अभी मुझको जो खुदा ने बना के भेजे है साथ मेरे
वरना ये "आदित्य" जिन्दगी को भी रुसवा कर गया होता
मुनकिन नहीं भूल जाना ये जानते है सब मोहबत करने वाले
मिटा देता नाम तेरा, गर तू दिल पे ना मेरे लिख गया होता
कहती है दुनिया एक झूठ अक्सर के बहने दो आंसूओ को गम कम होंगे
काश के तेरा गम भी मेरे आंसूओ के साथ बह गया होता
खुदा ने एक रिश्ता और बनाया है दोस्ती का जो हमेशा रहेगा
जानता हूं कुछ गम हंस के तू भी सह गया होगा
"आदित्य" तो निकलता है हर सुबह रोशनी मे अपनी सबकों राह दिखाने
और दीखता भी रहता गर अँधेरा निशा(रात्रि) का उसे ना निगल गया होता
**आदित्य सकलानी**

बड़ा अच्छा लगता है
















मेरे बुलाने पे वो तेरा आना बड़ा अच्छा लगता है
देर से आने पे वो तेरा बहाने बनाना बड़ा अच्छा लगता है
वो मिलना हमारा उस पुराने तालाब पे जाके
वो बार -२ तेरा तेरी जुल्फे बिखराना बड़ा अच्छा लगता है
वो आते ही पास तेरे, इंतजार मे तेरे थके होने का बहाना बनाना मेरा
सोने के लिए लिए वो तेरी गोद का सिरहाना बड़ा अच्छा लगता है
वो बार-२ तुझसे मिलने कि मेरा जिद करना
समझा करो ये कह के तेरा मुझे सताना बड़ा अच्छा लगता है
जब भी मुश्किल आये कोई मेरी जिन्दगी कि राहों मे
मैं हूं ना कह के तेरा वो मुझको गले लगाना बड़ा अच्छा लगता है
पुछु जो कभी सवाल कोई भरी महफिल मे नजरो से अपनी
और मेरे सवाल पे वो तेरा नज़रे झुकाना बड़ा अच्छा लगता है
आ जाऊ जो कभी सामने तुम्हारे अचानक से मैं
वो देख के मुझे तुम्हारा शरमाना बड़ा अच्छा लगता है
वो तुम्हारे मुह से आदि कहलवाना बड़ा अच्छा लगता है
आप ही तो कहते हो आपको हमे आदि कह के बुलाना बड़ा अच्छा लगता है

**आदित्य सकलानी**

यह है हसीनो का असली रूप

















यह है हसीनो का असली रूप नागिन बनके है ये हम बेचारे लडको को डसती
जहर जब फ़ैल जाये दिल तक हमारे तो है हमारी बेबसी पे हंसती
इछाधारी है दोस्तों अलग अलग रूप दिखा के है बहलाती
बाद जाने के तुम्हारे बैठ के साथ सहेलियों के है तुम पे फ़ब्तिया कसती
हर जगह है फैली हुई ये मेरे साथियों
ना कोई शहर कि सीमा है ना है इनकी कोई बस्ती
फंसना ना इनके जाल मे तुम बहुत खतरनाक प्राणी है ये
फ़साने को अपने जाल मे मीठी-२ बाते है ये करती
बाद डसने के इनके जब रुक जाये दिल कि धडकने तुम्हारी
हमने तो कुछ भी नहीं किया ये है दोस्तों ये कहती
बीन बजा प्यार कि काबू मे करने कि अगर सोच रहे हो तुम इनको
तो बेटा प्यार व्यार के जाल मे नहीं है ये कभी फंसती
वक़्त है बच्चू अब भी संभल जाओ तुम सारे
ना आना कल ये कहते हुए पास "आदित्य" के के आज ये हमे भी डस ली
**आदित्य सकलानी**

ये मैंने सिर्फ हास्य के उद्देश्य से लिखी है कृपया इसे अन्यथा ना ले

Wednesday, December 15, 2010

चाहत चाँद की - Chaht Chand Ki






















कुछ सीढियों के बाद जहाँ रास्ता खत्म है उस रास्ते पे तू जाता क्यों है
प्यार के मायने ही पता नहीं है जिनको उनसे तू प्यार जताता क्यों है
चाँद कि रौशनी दूर से ही अच्छी दिखती है उसे वही से देखा कर
उसकी ठंडक से भरी रोशनी मे तू अपनी राते बिताता क्यों है
जानता है तेरा पहुंचना मुश्किल है उस तक
तो देख के तू उसको रात भर अपना दिल बहलाता क्यों है
बता जो दी उसने आज तुझको, के तेरी हद कहा तक है
जान के सच अपना अब तू अश्क बहाता क्यों है
सुनसान सी लगती है अब जब महफिले तेरी
फिर भी उम्मीद लेके तू महफिलों मे आता क्यों है
तू तो कहता है "आदित्य" कि उस शख्श कि यादों का तुझ पे कोई साया नहीं है
फिर बता जरा के तेरी गजलो मे जिक्र उसी का आता क्यों है