Tuesday, September 27, 2011

वादा

करके गये थे वादा आने का सदियाँ बीत गयी आप ना आये
अब भी साथ है मेरे तुम्हारी दी हुई तन्हाईयो के साये
तू आ मेरी जिन्दगी में या ना आ ये फैसला तेरा है
हम आज भी रातें गुज़ारते है चाँद कि रोशनी में कि शायद तू आये
चल आज तेरे फैसले पे यकीन कर लिया मैंने कि फैसला तेरा दिल से था
हम नहीं याद करेगे तुझे फिर ना कहना गर हमारा कोई तुझे पैगाम ना आये
अंधेरों ने तो सबकों रह दिखाने वाले "आदित्य" को भी कहा छोड़ा है
नहीं तो वो भी सोचता है कभी तो ऐसा हो सुबह के बाद शाम ना आये
अब देखिये ये सब बाते अपने तक ही रखियेगा मेरे दोस्तों
अपने दिल से जो कुछ कहिये बस चर्चा इस "आदित्य" का महफिलों में सरेआम ना आये
**आदित्य सकलानी**

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