Thursday, August 23, 2012

एक बेल के जीवन कि कहानी जो कुछ -२ अपनी सी लगती है - Ek Bel Ke Jeevan Ki Kahani Jo Kuch Kuch Apni Si Lagti Hai


























बीज कि कोमल कोंपल जब धरा से बाहर आती है तो उसे पता नहीं होता उसकी किस्मत क्या है. वो कोंपल किसी किसान ने नहीं उगाई ये खुद उगी है एक अँधेरे जंगल में,  ना धूप से बचाने वाला कोई है ना पानी देने वाला कोई | समय इसे बताएगा इसकी किस्मत में क्या लिखा है | इसे लड़ना होगा अपना अस्तित्व बचाने के लिए पर ..! इसकी लड़ाई है किस से इसका तो कोई दुश्मन ही नहीं है .पर  देखा जाये तो हर कोई इसका दुश्मन है| कही किसी के पाव के निचे दब गयी तो ..? या किसी पशु ने इसे अपनी भूख मिटाने के लिए खा लिया तो.? थोड़ी बड़ी हो गयी अब एक बेल बन चुकी है मगर उसकी किस्मत अच्छी नहीं निकली आस पास कोई पेड़ भी तो नहीं जिसका सहारा लेकर वो उपर चढ़ सके और वो पोधा भी तो नहीं है जो खुद के पैरो पे खड़ा हो सके. गर्मियों कि धुप सह रही है जमीन पे पड़ी पड़ी कभी कभी लगता इस जिन्दगी जीने से क्या फायदा भूखी-प्यासी हर समय संघर्ष करती जिन्दगी पर संघर्ष का ही दूसरा नाम तो जिन्दगी है कभी कभी दो बुँदे पानी कि बरसती है तो जीने कि आस खड़ी हो जाती है इसी आस के सहारे जिन्दगी चल रही है मगर कब तक बहुत दिन हो गये बादल नहीं बरसे आसमां कि तरफ टकटकी लगाये देख रही है कब पानी बरसे और उसकी प्यास बुझ जाये पर आस तो आस है. प्यास से जान निकली जा रही है उपर से सूर्य कि गर्मी से अब पत्ते भी सूखने लगे है .अब उसका साहस जवाब देने लगा है ऐसा लग रहा है शायद वो जिन्दगी कि लड़ाई हार जाएगी. अकेली कब तक सब से लड़ेगी वो और अपनी किस्मत से भी तो लड़ रही है | अगर किस्मत अच्छी होती तो किसी पेड़ के सहारे उपर ना चढ़ती यू जमीन पर क्यों पड़ी होती | उसे पेड़ कि छाव नसीब होती यू गर्मी में तपना नहीं पड़ता | किसे दोष दे हालत को या किस्मत को हालत अच्छे होते तो बारिश हो जाती हालत और किस्मत दोनों उसके पक्ष में नहीं पर उसे तो लड़ना है जिन्दगी के लिए अभी तो बहुत कुछ देखना बाकि है यही सोच के उत्साह के साथ फिर उठ खड़ी हुई कि वो लड़ेगी जिन्दगी के लिए हालत और किस्मत दोनों से | बहुत साहसी है ये बेल |शाम हो चली है सूर्य ढल रहा है कुछ ठंडक का एहसास हुआ | अचानक से हवाये चलने लगी है बादल छा गये लगता है बारिश होने वाली है मन आनंदित हो उठा लेकिन ये बारिश नहीं ये तो तूफान है जो धीरे-२ उस कि तरफ बढ़ता चला आ रहा है आखिर तूफान आ ही गया उस बहुत कोशिश कि तूफान से लड़ने कि, वो होसला ,वो जीने का ज़ज्बा वो हालत और किस्मत से  लड़ने कि द्रिढ़ शक्ति सब तूफान के आगे हार गयी आखिर तूफान अपने रास्ते निकल गया उसे जो करना था वो कर चुका था सब तहस नहस हो चूका था बड़े-२ पेड़ उखड चुके थे और.. वो बेल अरे !  कहा गयी ? यही तो थी .....नहीं अब नहीं है उसका कोई निशां अब बाकि नहीं तूफान उसे भी अपने आगोश में समा ले गया |

क्या हमारी जिन्दगी भी कुछ इस तरह कि है या शायद नहीं है ..................?
अजीब कशमकश में हूं मैं कशमकश जिन्दगी कि क्या कोई सुलझाने में मेरी मदद करेगा !

  लेखक : आदित्य सकलानी

 ये दुनिया, ये लोग, ये दोस्त और ये "आदित्य"
सब भूल जायेगे मुझे पीछे रह जायेगा मेरा साहित्य
ये "आदित्य" कही अंधेरों में खो भी गया तो क्या गम है
सुबह के उजाले लेते हुए आएगा आसमां में वो दूसरा आदित्य