Wednesday, December 15, 2010

चाहत चाँद की - Chaht Chand Ki






















कुछ सीढियों के बाद जहाँ रास्ता खत्म है उस रास्ते पे तू जाता क्यों है
प्यार के मायने ही पता नहीं है जिनको उनसे तू प्यार जताता क्यों है
चाँद कि रौशनी दूर से ही अच्छी दिखती है उसे वही से देखा कर
उसकी ठंडक से भरी रोशनी मे तू अपनी राते बिताता क्यों है
जानता है तेरा पहुंचना मुश्किल है उस तक
तो देख के तू उसको रात भर अपना दिल बहलाता क्यों है
बता जो दी उसने आज तुझको, के तेरी हद कहा तक है
जान के सच अपना अब तू अश्क बहाता क्यों है
सुनसान सी लगती है अब जब महफिले तेरी
फिर भी उम्मीद लेके तू महफिलों मे आता क्यों है
तू तो कहता है "आदित्य" कि उस शख्श कि यादों का तुझ पे कोई साया नहीं है
फिर बता जरा के तेरी गजलो मे जिक्र उसी का आता क्यों है

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