Sunday, August 29, 2010

बात मेरी और मेरी तन्हाई कि























शायद मेरी तन्हाई मेरा साथ दे
तनहाइयों में जाने को अपना हाथ दे
कुछ समय के लिए आप सबसे अलविदा चाहुगा
भगवान आप सब को "आदित्य" कि तरफ से खुशियों कि सौगात दे
बात कि थी कल तन्हाई से चाँद ,सितारे और रात गवाह है
उसने कहा मेरे आगोश में आ जा यही बस इक सलाह है
ये भी कहा कि मैं तुझको बहुत आराम दूंगी
सोचा भी जो ना होगा तुमने पल वो तमाम दूंगी
मैंने भी सोचा क्यों ना जाके देख लूं
उसकी तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ा के देख लूं
पर बोल दिया है "आदि" ने भी तन्हाई को उसके  पास जाने से पहले
कि फिर से सोच ले तू एक बार मुझको बुलाने से पहले
कही ऐसा ना तुझको अपने फैसले पे अफ़सोस हो जाये
तू मुझे लौट के जाने को कहे और तब तक मेरी जुबा खामोश हो जाये

Monday, August 23, 2010

मैं ऐसा ही हूँ


खुदा ने पैदा किया लेके दिल में जज़्बात एसे
कि मैं भूल के खुद को ओरों के लिए जीने लग गया
दुनिया ने हर कदम पे पैरों तले रौंदा मुझको
और में मुस्कुरा के हर गम पीने लग गया
लग ना जाये मेरी किसी बात का किसी को बुरा
सोच के ये हर बात पे होंठ अपने सीने लग गया
देखे सीने किसी के जब भी जख्म गम के
लेके सुई-धागा हंसी का उनको सीने लग गया
क्या बुरा किया मैंने जो सोचा सबका भला
जो हर शख्स लेने को खुद का मज़ा मदिरा कि तरह मुझको पीने लग गया
इस चकाचौंध दुनिया कि खवाइश तो "आदित्य" को कभी थी ही नहीं
बस देख के हालत दुनिया के अब अकेले जीने लग गया
अब अकेले जीने लग गया ......................?

ये सिर्फ कविता नहीं ये मैं हूँ मैं आदित्य सकलानी. में ऐसा ही हूँ सच में ऐसा ही हूँ मैं कभी -२ में खुद को ही समझ नहीं पता हूँ ........?
मुश्किल हो गया जीना मेरा इस दुनिया में
हालत ये हैं कि खुद को भी नहीं समझ पा रहा हूँ
ताश के पत्तों कि तरह हाथों में जिन्दगी है मेरी
हर पल बस बिखरता जा रहा हूँ मैं


दिल में जो था शायरी में ढाल कर आपके सामने रख दिया सच कह रहा हूँ बहुत सकूं मिल रहा है ...........................?

23 Aug, 2010