लगता है कलम के रुकने का वक़्त आ गया
जो सियाही थी तेरे प्यार कि वो अब खत्म हो चुकी है
जिस उम्मीद पे हम लिखते थे गजल तेरे नाम कि
वो उम्मीद अब अब दिल मे कही दफ़न हो चुकी है
ना उठा इस सफ़ेद कागज़ कि चादर को मेरे चेहरे से
अब ये कागज़ कि चादर एक कफ़न हो चुकी है
**आदित्य सकलानी**
जो सियाही थी तेरे प्यार कि वो अब खत्म हो चुकी है
जिस उम्मीद पे हम लिखते थे गजल तेरे नाम कि
वो उम्मीद अब अब दिल मे कही दफ़न हो चुकी है
ना उठा इस सफ़ेद कागज़ कि चादर को मेरे चेहरे से
अब ये कागज़ कि चादर एक कफ़न हो चुकी है
**आदित्य सकलानी**
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