Tuesday, September 27, 2011

दिल से दिल तक

सोये हैं हाथो मे गुलाब लिए, मगर इश्क का इज़हार नहीं करते
रहते हैं मेरे दिल मे कैसे कह दूं के वो मुझे प्यार नहीं करते
मेरे दिल कि हर धडकन धड़कती है नाम लेके उसका
मेरी जान बसी है उनमे कैसे कह दूं वो मेरी धडकनों पे ऐतबार नहीं करते
कहना चाहता हूं जो भी बिना कहे मेरे ,"दिल से दिल तक " उनके हर बात पहुचती है
जिस बात मैं जिक्र उनका ना आये हम वो बात नहीं करते
जब भी आँखे बंद करता हूं वो आते है मुझसे मिलने
कैसे कह दूं के वो मुझसे मुलाकात नहीं करते
अगर चाहता है खुदा के "आदित्य" उनको उस से मांगने कि दुआ करे उस से
तो सुन ले ऐ खुदा जो हमारा है हम उसे पाने कि तुझ से भी फरियाद नहीं करते
**आदित्य सकलानी**

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