दर्द जब दिल का हद से बढ़ गया
उठा के कलम, कागज़ पे "आदित्य" अपनी बात कह गया
किसे ने कहा दीवाना है, किसी ने कहा पागल है
और पढ़ के कोई उस कागज़ को मुझे शायर कह गया
किसी ने कहा ग़ज़ल आपकी काबिले तारीफ है
कोई पढ़ के चंद शब्द इसको बकवास कह गया
किसी को इसमें उसका महबूब नज़र आया किसी को किसी कि बेवफाई
किसी ने कहा ये तो मेरे दिल की बात कह गया
ना जाना किसी ने लिखने वाले के दर्द को
जो ग़ज़ल के हर शब्द के साथ आंसूओ मे बह गया
सो गया जो कभी गुमनामियो के अंधेरो मे जाके आदित्य
आके मेरी नज्मो कि रोशनियों ने कहा उठ जाओ अब सवेरा हो गया
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