Sunday, September 5, 2010

बार - बार Bar-Bar














कभी सुरुवात की थी हंसने हँसाने से
आज वक़्त गुज़र जाता है रूठने-मनाने में

पता नहीं ये खता हमसे क्यों होती है बार बार
हमसे मिलने पे आँखें किसी की नम क्यों होती है बार बार|
चाहा तो बहुत की न कहे कुछ भी ऐसा जो दिल पे लगे||
पर न जाने वही बाते जुबा पे क्यों होती है बार बार|
शायद हमारी किस्मत में ही नहीं दोस्ती किसी की पाना||
तभी तो धोखा हमारी किस्मत हमे यु देती है बार बार|
कहते है की हाथो की लकीरों में जो लिखा है वो होके रहेगा||
पर हमारी तो हाथो की लकीरे भी बदलती है बार बार|


ये मेरी खुद की लिखी हुई सिर्फ एक छोटी सी कविता ही नहीं
परन्तु मेरे दिल के जज्बात है जिन्हें हमने शब्दों की माला में पिरो कर
कविता में ढाला है

कई बार इन्सान करना कुछ और चाहता है पर हो कुछ और जाता है
वो पाना कुछ कुछ और चाहता है पर उसे मिलता कुछ और है शायद यही दुनिया का दस्तूर है
यदि आप लोगो को ये पसंद आये तो कृपया अपने विचार अवश्य दे

1 comment:

  1. कभी सुरुवात की थी हंसने हँसाने से
    आज वक़्त गुज़र जाता है रूठने-मनाने में

    बहुत बढ़िया कविता ...पर थोडा सुधार कर लें .. जैसे
    कभी शुरुआत की थी हंसने हँसाने से...

    भाव अच्छे हैं ... धन्यवाद्.

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